मसाला उद्योग क्या है मसाला उद्योग की शुरुआत कैसे करें (HOW O START MASALA BUSINESS IN 2023)सम्भावनाएँ क्या है मसालों के उत्पादन की योजना कैसी होनी चाहिए,हानि या लाभ,प्रचार व्यवस्था व मसालों की बिक्री व्यवस्था कैसी होनी चाहिए ?

मसाला उद्योग क्या है मसाला उद्योग की शुरुआत  कैसे करें सम्भावनाएँ क्या है मसालों के उत्पादन की योजना कैसी होनी चाहिए,हानि या लाभ,प्रचार व्यवस्था  व मसालों की बिक्री व्यवस्था कैसी होनी चाहिए 

HOW TO START MASALA BUSINESS in 2023


 
मसाला उद्योग क्या है -एक परिचय 
(Introduction on Masala Industry)


सारे संसार में विभिन्न प्रकार के मसालों का प्रयोग भोजन के स्वाद को जायकेदार व स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है। बाजार के हिसाब से मसालों को दो वर्गों में बाँटा गया है। पहले अपने मूल रूप में रहने वाले मसाले, दूसरे विभिन्न मसालों के मिश्रण से तैयार मसाले जो पिसे हुए रूप में या तेल व तेलीय रूप में होते हैं। भारत में मसाले, चूर्ण व चटनियाँ किसी परिचय की मोहताज नहीं है। प्राचीन समय से भारत मसालों का घर जाना जाता है, मसालों का निर्माण करना मुख्य रूप से कृषि की उपयोगिता को बढ़ावा देना है जो कि वास्तव में एक स्वतंत्र व हर क्षेत्र में लगाया जा सकने वाला उद्योग है।




 पिसे हुए मसालों का व्यवसाय या उद्योग आज सबसे तीव्रगति से बढ़ने वाला ऐसा उद्योग है जिसमें विकास की असीम संभावनाएँ मौजूद है। बढ़ते हुए जीवन स्तर व कामकाज की भागदौड़ के साथ-साथ नगरों में बढ़ती आबादी और नगर-निवासियों के रहन-सहन के तरीकों ने आज पिसे हुए मसाले खरीदना प्रत्येक गृहणी की विवशता बना दिया है, यही कारण है कि बड़े-बड़े होटल, रेस्टोरेन्ट, शादी-ब्याह, छोटी बड़ी पार्टियों यहाँ तक कि बड़े घरों से लेकर छोटे परिवार तक जिन आवश्यक वस्तुओं को खरीदते हैं, उनमें पिसे हुए मसाले खरीदना भी जरूरी है। पिसे हुए मसालों में चाट मसाला, मीट, चना, दाल, सांभर तथा गरम मसाला इत्यादि वे सभी मसाले आते हैं। जिनकी हर घर, रेस्टोरेंट, होटलों व चाट-पकौड़ी बनाने वालों तक को जरूरत होती है। भारतीय मसालों और विभिन्न प्रकार की चटनियों व चूर्ण ने विश्व पर कई आक्रमण किये है और इसे पूरी जीत भी हासिल हुई। इसलिए आज भारत को मसालों का घर माना जाता है। मसाले पाकशास्त्र के लिए इतने आवश्यक है कि विश्व में कोई भी भोजन इनके बिना नहीं पकाया जा सकता। अन्तर्राष्ट्रीय मानक संगठन (ISO) के अनुसार मसालों चटनियों व चूर्ण के लिए अलग से कोई मानक नहीं है। क्योंकि मसाले, चटनी व चूर्ण सभी एक श्रेणी में ही आते हैं। क्योंकि समय-सीमा के अंतर्गत मसाले व चटनियाँ वास्तविक मसालों के पौधों व साग-सब्जी के आपसी मिश्रण से तैयार किये जाते है।


मसालों के उद्योग में बने रहने के लिए किस तरह काम करना चाहिए ?


विभिन्न प्रकार की सुगंध, चरचरापन व विशेष प्रकार का मानक परिपक्वपन लाने के लिए कई प्रकार के मसालों का उचित मात्रा में मिश्रण किया जाता है ताकिये आखिरी दम तक अपनी छाप बनाये रख सके। जो कि सब प्राकृतिक है जिसमें काई सेन्थेटिक फ्लेवर मिलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। भारत में मसाला उद्योग की असीम संभावनाएँ तो मौजूद हैं ही, सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि इस उद्योग में हानि की संभावना है ही नही। इस उद्योग में लगाया गया आपका धन सुरक्षित रहता है क्योंकि आप बाज़ार में आवश्यकतानुसार साबुत मसाले खरीदकर उन्हें अपने यहाँ मात्र पीसते और पैक करते है उनसे कोई नई वस्तु नहीं बनाते। प्रक्रिया के मध्य खराब होने का डर अधिक मात्रा में कच्चा माल खरीदने की आवश्यकतानुसार तत्काल साबुत मसाले खरीदकर कूट-पीसकर उन्हें उसी दिन या अगले दिन पैक करके बाज़ार में बिक्री के लिए लिए भेज सकते हैं। इस प्रकार न तो बाज़ार की तेजी-मंदी अर्थात मसालों की कीमतों में उतार-चढ़ाव का अन्तर आपके व्यवसाय पर पड़ता है और न ही हानि की कोई संभावना ही रह पाती है। हानि की आशंका से रहित अधिक मुनाफादायक उद्योग होने के कारण ही
आज लगभग सभी सरकारी मार्केटिंग संस्थान, सुपर बाज़ार तो मसालों को पीसने और पैक करने का कार्य कर रहे ही हैं, भारत का सबसे बड़ा महिला सहकारी उद्योग भी पीसे हुए मसालों के इस उद्योग में अपने कदम जमा चुका है। भारत-विख्यात 'लिज्जत पापड़' निर्माता महिला गृह उद्योग सहकारी समितियों के 'लिज्जत ब्रान्ड' पिसे हुए
मसालें आज बड़ी से बड़ी कम्पनियों से टक्कर ले रहे हैं और बाजार में अपना विशेष दर्जा हासिल कर रहे हैं।




मसालों के इस उद्योग में इतना अधिक शुद्ध मुनाफा है कि आज बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थान भी इस उद्योग में आने को इच्छुक हैं। सम्पूर्ण भारत में करोड़ों रूपये प्रति वर्ष टर्नओवर करने वाला विशाल उद्योग समूह “हिन्दुस्तान लीवर" भी इस उद्योग में कदम रख चुका है। यहीं नहीं प्रख्यात कम्पनी "ब्रुक बॉन्ड" जो केवल चाय
का ही व्यवसाय करती थी और केवल चाय के बल पर ही सम्पूर्ण देश में लगातार अनेक वर्षों से प्रति शेयर सर्वाधिक मुनाफा देने वाली कम्पनी के रूप में विख्यात थी, मसालें के व्यवसाय में न केवल उतर चुकी है बल्कि चाय से भी अधिक ध्यान अब मसालों पर दे रही है। “ब्रुक बॉन्ड" कम्पनी अब टेलीविजन पर अपनी चाय से
कई गुना विज्ञापन 'सोना शुद्ध मसालों' का कर रही है तो लिज्जत पापड़ से अपनी पहचान बनाने वाली महिला गृह उद्योग सहकारी समिति पापड़ से भी अधिक प्रचार अपने मसालों का ही कर रही है। पहले से दो अत्यंत लाभदायक उद्योग -व्यवसायों में कार्यरत ये बड़ी-बडी कम्पनियाँ मसालों को पीसने अरैर पैक करने के इस उद्योग में पूरे जोर-शोर से आई हैं और इसका एकमात्र कारण यहीं है कि हानि की आशंका से रहित इस उद्योग में बेहद मुनाफा तो है निरन्तर विकास की असीम संभावनाएँ भी निश्चित रूप से मौजूद हैं।
 छोटे से स्तर से शुरु करने वाली महाशियाँ दी हट्टी (M.D.H) आज मसाला निर्माण में करोड़ों का व्यवसाय करने वाली देश की अग्रणी मसाला निर्माण व निर्यातक कम्पनी बन चुकी है।

मसालों  के उद्योग में क्या काम करना होता है


मसालों के इस सुलभ उद्योग में आप बाज़ार से साबुत मसाले खरीदकर उन्हें अपने यहाँ साफ करके पीसते और पैक करते हैं। आप इनमें न तो कुछ मिलाते है, न इनके ऊपर कोई रसायानिक-क्रिया प्रक्रिया ही करते हैं और न ही इन्हे गर्म या ठंडा करना अथवा ऐसा कोई कार्य करते है जिसका लगातार एक निश्चित गति में होना आवश्यक हो। यही कारण है कि बिजली चले जाने, किसी भी कारण से उत्पादन में व्यवधान आने अथवा कोई भूल-चूक हो जाने पर आपका माल एक प्रतिशत भी खराब नहीं होता। यदि गलती से मसाला मोटा पिस जाए तब उसे दोबारा पीसकर आप उसे वांछित सीमा तक महीन पीसकर पैक कर सकते हैं। निरन्तर काम करते हुए विद्युत आपूर्ति बन्द होने पर इनके खराब होने का भय भी नहीं है। देश में विभिन्न प्रकार के मसालों की खेती के उत्पादन को बढ़ावा देने व बेहतर फसल प्राप्त करने के लिए विभिन्न शोध किये जा रहे है। फिर भी इसमें और रिसर्च और शोध करने की आवश्यकता है, ताकि किसानों को मसालों की खेती से उचित मुनाफा मिल सके। दूसरे देश की तुलना में हमारे देश में इस समय केवल एक आठ अनुपात में ही मसालों का उत्पादन हो रहा है क्योंकि किसानों को अभी सही रूप
के में वैज्ञानिकों द्वारा शोध व अन्वेषण की सूचना उपलब्ध नहीं की जा रही है। अत: इस और विशेष शोध व सूचना प्रौद्योगिकी व प्रसारण की आवश्यकता है ताकि देश में दूर-दराज के छोटे-बड़े किसानों को अच्छे उत्पादन की विधि उपलब्ध करायी जा सके । यदि मसालों की खेती उन्नत व बढ़िया होगी तो किसानों को उनकी खेती का
अधिक लाभ मिलेगा ही, साथ-ही-साथ मसाला निर्माता कम्पनियों को सस्ती दरों व हर क्षेत्र में आसानी से सभी तरह के मसाले (कच्चे रूप) उपलब्ध हो सकेंगे। यदि कच्चा माल आसानी से व सस्ता उपलब होगा तो उत्पादन अधिक होगा जिससे घरेलू मांग की पूर्ति के साथ-साथ अधिक माल निर्यात भी हो सकेगा।

मसाला उद्योग में  सम्भावनाएँ क्या है  (Feature of Spice Industry)


मसाला उद्योग एक ऐसा उद्योग है जिसमें विकास की असीम सम्भावनायें है। इसमें आपकों बस थोड़ी मेहनत व लगन व बाज़ार व्यवस्था की स्थिति को मजबूत करना होगा। इसके साथ अपने उत्पाद की गुणवता को उच्च श्रेणी का बनाया रखना होगा, बस आप इतना कर सकते हैं कि यह उद्योग व व्यवसाय इतनी तीव्रगति से विकास करता है तो, आप अपने क्षेत्र में एक सफल व्यवसायी बन सकते हैं। बढ़ते हुए जीवन स्तर को, नगरों में बढ़ती हुई आबादी, रहन-सहन के स्तर तथा दैनिक जीवन की व्यस्तताओं के चलते हुए आज पिसे हुए मसाला खरीदना हर घर की आवश्यकता बन गई है। यही कारण है कि जहाँ पिसे हुए मसालों की ज़रूरत बड़े होटल, रेस्टोरेन्ट व ढाबों व उच्च वर्ग तक ही थी, वहीं आज काम के बोझ से दबा हर परिवार पिसे हुए मसालों का ही प्रयोग कर रहा है। भारत आज विश्व का अग्रणी मसाला उत्पादक देश है अपनी घरेलू मांग की पूर्ति के अतिरिक्त विश्व के लगभग सभी देशों को मसालों का निर्यात भी कर रहा है। विदेशी मुद्रा के भंडार में बढ़ोतरी करने वालों में मसाला उद्योग भी एक है। इस समय विश्व में लगभग 70 तरह के मसालों को खेती करके उगाया जाता है जिसमे अधिकतर भारतवर्ष में ही उगाये जाते हैं। मसालों की खेती में इन मसालेदार पौधों के विभिन्न प्रकार के हिस्से काम में आते हैं।जिनमें कई पौधों के फल, किन्हीं के फूल, किन्हीं की पतियाँ तो किन्हीं के कंद,टहनियाँ व जड़ तक काम में ले ली जाती है।

मसालों के उत्पादन की योजना कैसी होनी चाहिए 
(Project for the Production of Planning Different Spices)


मसाला उद्योग एक ऐसा उद्योग है जिसमें हानि की संभावनाय नाममात्र की भी नहीं है, यह छोटे से स्तर तथा बड़े स्तर पर थोड़ी या बड़ी पूँजी से शुरु किया जा सकता है। यह एक 10' x 10" फुट के कमरे में भी शुरू किया जा सकता है तथा विस्तृत व्यवसायिक भूखण्ड में लगाने की योजना भी बनाई जा सकती है। अर्थात मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि इस उद्योग पर बड़े औद्योगिक घरानों का दक-दबाब नहीं है इसे छोटी पूँजी से, कोई भी व्यक्ति शुरू कर सकता है, यद्यपि यह व्यवसाय (उद्योग) छोटी पूँजी से भी शुरू किया जा सकता है तथापि इसके लिए भी के प्रक्रियायें आवश्यक है जो एक आम उद्योग को संचालित करने के लिए की जाती है। प्रारंभिक व आवश्यक जानकारी-उद्योग काई भी हो, छोटा या बड़ा उसके बारे में गहन अध्ययन करना नितान्त आवश्यक है यदि आपने उद्योग व उसके उत्पादों की बाजार व्यवस्था का ज्ञान अच्छी प्रकार से कर लिया है तो आप अपने क्षेत्र में निरन्तर आगे ही बढ़ते रहेंगे, और यदि आप बिना किसी जानकारी के कार्ड उद्योग स्थापित कर रहे है तो आपको कदम-कदम पर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, ऐसे में व्यवसायी को घाटा भी हो सकता है, कभी-कभी अत्यधिक बाट के कारण उद्योग (व्यवसाय) को बन्द भी करना पड़ सकता है। हम यहाँ पर मसाला उद्योग की चर्चा कर रहे है, अत: सर्वप्रथाम हमें मसाला उद्योग के बारे में विस्तार से जान लेना चाहियो। हमें  इस उदयोग  की प्रारंभिक व्यवस्था, तथा मार्किट स्थिति की व्याख्या कर  चाहिए। 

क्या मसाला उद्योग हानि रहित उद्योग है (Is the spice industry a harmless industry?)


                        मसाला उद्योग पूर्णतया हानि रहित उद्योग तो है ही, यह उन चंद चुने हुए उद्योगों में से एक है जिनमें विकास की असीम संभावनायें मौजूद है। महानगरों में प्रारंभ हुआ उद्योग आज छोटे-छोटे नगरों और कस्बों तक अपनी गहरी जड़ें जमा चुका है। पिसे हुए मसालों का प्रयोग अब महानगरों में ही नहीं छोटे-छोटे कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी होने लगा है। नगरों में तो धनी, निर्धन, उच्च शिक्षित-अशिक्षित, नौकरी पेशा, व्यवसायो, मालिक तथा मजदूर सभी अपने घरों में पिसे मसाले प्रयोग करते ही हैं। विवाह-शादी आदि उत्सवों और पार्टियों में जब बहुत अधिक व्यक्तियों के लिए बड़ी मात्रा में भोजन तैयार किया जाता है, तब भी पिसे हुए डिब्बाबन्द मसाले ही प्रयोग किये जाते हैं। आज हलवाई और होटल वाले भी अपने प्रयोग के लिए साबुत मसाले खरीदकर पिसवाने के स्थान पर डिब्बाबन्द पिसे हुए मसाले (Packed Spices) खरीदना ही पसन्द करते हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार आजकल हमारे देश के महानगरों में रहने वाले नब्बे प्रतिशत से अधिक परिवार और कस्बों ओर अर्धशहरी क्षेत्रों के आधे से अधिक परिवार बाज़ार से पिसे हुए मसाले ही खरीदते हैं क्योंकि साबुत मसाले खरीदकर उन्हें पीसने के झंझट में पड़ना नही चाहते। जो परिवार किसी कारणवश अभी तक बाज़ार से साबुत मसाले खरीदकर उन्हें अपने यहाँ हाँ पीसकर ही प्रयोग कर रहे हैं वे भी वक्त-बे-वक्त पिसे हुए डिब्बाबन्द मसाले ही खरीद लेते हैं। जो व्यक्ति दो-चार बार भी पिसे हुए मसाले खरीद लेता है तो फिर वह परिवार इन मसालों का स्थाई ग्राहक ही बन जाता है क्योंकि पिसे हुए मसाले खरीदने पर कूटने-पीसने के झंझट से तो मुक्ति मिल ही जाती है। अच्छे निर्माताओं के मसालों का स्तर-रंग रूप, स्वाद, गुणवता और पैकिंग भी काफी अच्छी और संतोषप्रद (Upto the qualify mark)होती हैं। यही कारण है कि अब ग्रामीण क्षेत्रों तक में दुकानदार डिब्बाबन्द पिसे हुए मसाले बेचने लगे है और वे परिवार भी जो आज तक घर में सिलबट्टे पर मसाला पीसते थे, आजकल इन पिसे मसालों का प्रयोग करने लगे हैं। पिसे हुए पैक्ड मसालों की तो बाज़ार में भारी माँग है ही इनके साथ-साथ विभिन्न मसालों को मिलाकर बनाये गये सब्जियों, मीट, चना, सांभर मसाला आदि की भी भारी माँग है। पिसे हुए मसालों के व्यवसाय को उद्योग का रूप देने वाली राजधानी को प्राचीन और प्रख्यात फर्म महाशियाँ दी हट्टी के 'किचिन किंग ब्राण्ड' चना मसाला, मीट मसाला, सब्जी मसाला आदि की आज बाज़ार में धूम है। अनेक निर्माता अब विविध नामों इस प्रकार के मसाले बना और बेच रहे हैं और लगभग सभी निर्माताओं की ब्रिकी वर्ष-प्रतिवर्ष बढ़ती ही जा रही है। इतने अधिक छोटे-बड़े निर्माताओं के होते हुए भी शायद ही कोई कम्पनी हो जिसे अपना उत्पादन बेच पाने में कोई कठिनाई आई हो। इस उद्योग में आज भी प्रतियोगिता नाममात्र के लिए ही है ओर इसका एकमात्र कारण भी यहीं है कि जो परिवार इन मसालों का प्रयोग कर लेता है वह तो सदैव के लिए इनका ग्राहक बन ही जाता है। नित्य ही हजारों नए परिवार भी इन्हें अपनाते जाते हैं। इस प्रकार इस उद्योग में आज भी विकास के असीमित क्षेत्र खुले हुए पड़े हैं बस आवश्यकता है

 मसालों के उद्योग के साथ-साथ और किस प्रकार के प्रौडक्ट्स तैयार कर सकते हैं

एक बार इस उद्योग में कदम रखने के बाद बाजार स्थिति को देखते हुए आप  मसालों के अतिरिक्त आप अपने उद्योग में तरह-तरह के चूरन, खट्टे-मीठे अचारों के लिए मसाला तथा आम भोजन आदि के लिए तैयार मिक्सड मसाला भी तैयार कर सकते हैं, जिसकी डिमाण्ड आपको अतिरिक्त मुनाफा दे सकती है। ये मसाले अचारों के सीजन में ही बनाकर पैक और बेचे जाते हैं तथा इनमें अधिक कीमती मसालों का प्रयोग भी नहीं होता,अत: अधिक पूँजी की आवश्यकता तो पड़ती ही नहीं व बहुत शानदार पैंकिंग भी नहीं करनी पड़ती है। कारण यह है कि मसाले अचार में उसी समय डाल दिये जाते है अन्य मसालों की तरह थोड़े-थोड़े दिन प्रतिदिन नहीं डालने पड़ते। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन मसालों को मुख्य रचक सामान्य नमक ही होता है। मसाले के कुल भार से तीन-चौथाई भाग तक नमक ही होता है अतः ये मसाले बहुत ही सस्ते पडते हैं। उद्योग स्थापित करने की तैयारी पिसे मसालों के निर्माण के क्षेत्र में मार्डन व्यवस्था के बारे में हम आपको बता चुके हैं कि उन ज़रूरी सावधानियों व सूत्रों की जिनकी सहायता से आप सफलता से बुलदियों को आसानी से छू सकते हैं।

1.क्या मसालों के निर्माण के लिए कच्चे माल की उपलब्धता आवश्यक है?(Availability of Raw Material)


    आप कोई भी उद्योग स्थापित करें, उसके लिए कच्चा माल आवश्यक है, यदि कच्चा माल आसानी से व नज़दीक से लिया जाये तो यह उद्योग की सफलता का पहला चरण होता है। मसालों के निर्माण के क्षेत्र में स्थानीय उद्यमी अपेक्षाकृत अधिक सफल हो सकते हैं क्योकि इनके निर्माण में प्रयोग होने वाले विभिन्न कच्चे माल ग्रामीण स्तर पर उपलब्ध हो सकते हैं तथा स्थानीय रूप से स्थापित होने के कारण उद्यमी स्थानीय मंडियों/गाँवों से पायी सुविधा तथा पसंद के कारण उच्च गुणवत्ता के कच्चे माल का चयन कर सकता है। अत: यदि कोई उद्योग इन उत्पादों के निर्माण से संबधित इकाई कस्बा/तहसील स्तर पर स्थापित करे, अच्छी गुणवत्ता का कच्चा माल प्रयुक्त करे तथा शुद्धता का ध्यान रखे तो उसके उत्पादों को आशातीत सफलता मिलनी निश्चित है.


2.  मसालों के उद्योग में प्लांट की क्षमता कैसी होनी चाहिए?  (Plant Capacity)


मसाला उद्योग एक ऐसा विशिष्ट उद्योग है जो कुछ हजार रुपये से लेकर करोड़ों रुपए तक किसी भी सीमा पर प्रारम्भ किया जा सकता है। इस उद्योग की दूसरी बड़ी विशेषता यह है कि इस उद्योग में जितना धन आप मशीनों और उपकरणों पर खर्च करते हैं उससे दस-बारह गुना अधिक धन साबुत मसालों की खरीद में रनिंग केपीटल के रूप में लग जाता है। एक मोटे अनुमान के अनुसार कम से कम दो ढाई माह के उत्पादन के खचों जितना धन इस उद्योग में कार्यकारी पूँजी के रूप में आवश्यक होता हैं। मसाले प्रायः दो से चार हफ्ते तक की उधारी पर ही बिकते हैं अत: कार्यकारी पूँजी और धन की व्यवस्था के अनुरूप ही उद्योग को फैलाना अच्छा रहता हैं। यदि आपने आवश्यकता अर्थात अपनी पूँजी क्षमता से अधिक माल खरीद लिया तो आपको माल बेचने की व्यवस्था भी उसी अनुरूप बनानी होगी। इसके साथ-साथ मार्केट में एक या दो महीने की उधारी भी चलती है अत: आप ध्यान रखे कि आपके पास इतनी पूँजी हो कि आप दो माह तक माल खरीद रखने की क्षमता रख सकें।

3. एगमार्क चिन्ह प्राप्त करना (To Take Ag-Mark Sign)


एगमार्क चिन्ह प्राप्त करने हेतु उद्यमी का उनकी इकाई के उत्पादन में आने के उपरांत राज्य लघु उद्योग निगम की क्वालिटी कन्ट्रोल एन्ड टैस्टिंग लेबोरेटरी अथवा इस तरह की अन्य अधिकृत प्रयोगशालाओं में सम्पर्क कर सकते हैं। यदि आपने अपने उत्पाद के लिये 'एगमार्क' चिन्ह प्राप्त कर लिया तो स्थानीय थोक विक्रेताओं के माध्यम से अपने उत्पादों का विपणन करने के साथ-साथ विभिन्न शासकीय विभाग, उपभोक्ता भण्डारों, विपणन संघों, आदि के माध्यम से भी अपने उत्पादों के विपणन हेतु पर्याप्त बाज़ार प्राप्त कर सकते हैं।
एग-मार्क व I.S.I मार्क केवल क्वालिटी नियंत्रण और गुणवत्ता के नियमों का पालन करने वाले उत्पादकों को ही सरकार द्वारा दिये जाते हैं अत: आम उपभोक्ता इनमें से किसी भी एक चिन्ह से अंकित वस्तु को सहज ही अच्छी, शुद्ध तथा हानिरहित मानकर निसंकोच खरीद लेता है। सामान्य मसालों की अपेक्षा 'एगमार्क मसाले' कुछ अधिक मूल्य पर भी सहज ही बिक जाते हैं क्योंकि उनकी गुणवत्ता सरकार द्वारा प्रमाणित होती है। यही कारण है कि आज प्रत्येक बड़ा उत्पादक अपने उत्पादनों को भारत सरकार द्वारा स्वीकृत मानदण्डों के अनुरूप अधिकतम संभव सीमा तक शुद्ध और गुणवत्तायुक्त बनाकर इस प्रकार के चिन्हों को प्राप्त करने की सतत
चेष्टा करता है।

4.मसालों के उद्योग शुरू करने से पहले  लाइसेंस प्रक्रिया कैसी  है  (Licensing Processor)


छोटे स्तर पर उद्योग प्रारंभ करते समय भी नगरपालिका, स्वास्थ्य विभाग और खाद्य विभाग से लाइसेंस तथा उचित अनुमति पत्र ले लेना इस उद्योग में निर्विघ्न सफलता की प्रथम शर्त है। पिसे मसाले खाद्य पदार्थों के अन्तर्गत आते हैं और चूर्ण आयुर्वेदिक औषधियों के। यही कारण है कि इस उद्योग को प्रारंभ करते समय
स्वास्थ्य विभाग की अनुमति लेना नितान्त आवश्यक है। बड़े स्तर पर कार्य करते समय तो स्वास्थ्य विभाग, खाद्य व आपूर्ति विभाग और नगरपालिका से अनुमति लेना नितान्त आवश्यक है वरना आप अनेक कानूनी झंझटों में भी पड़ सकते हैं।


5.मसालों के उद्योग में ब्रॉण्ड नेम रखना क्यों आवश्यक है  (Select a Brand Name)


पिसे हुए मसालों का प्रयोग मुख्य रूप से नगरों में रहने वाले समाज के अपेक्षाकृत अधिक शिक्षित सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक (Ultra modern) समझने वाले वर्ग के द्वारा किया जाता है। यही कारण है कि अंग्रेजी और अमेरिकन प्रभाव युक्त नाम प्राय: जल्दी और आसानी से लोकप्रिय हो जाते हैं। महाशयाँ दी हट्टी ने अपने मसालों को 'किचिन किंग' अर्थात रसोई का राजा नाम दिया है और सामान्य जनता इन्हें एम-डी-एच. के किचिन किंग के नाम से ही पुकारती है। सुनने में अच्छा लगने वाला, बोलने में सरल और आसानी से याद हो सकने वाला कोई पश्चिमी तर्ज का नाम रखकर उसका भरपूर प्रचार कीजिए और सुन्दर तथा सौम्य पैकिंग में अपनी वस्तुएँ पैक कीजिए फिर देखिए कितनी शीघ्र सफलता आपके कदम चूमती है।

6. मसालों के उद्योग शुरू करने से पहले ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड करना जरुरी है  (Registered Your Trade Mark)


मसाला  निर्माण उद्योग एक ऐसा उपभोक्ता सामग्री उद्योग है जिसमें बहुत विस्तृत क्षेत्र में आपको अपनी बिको व्यवस्था का जाल फैलाना पड़ता है। साथ ही प्रचार और केळी ज्यावस्था र आपको काफी धन खर्च करना पड़ता है। अनेक वर्षों की सतत मोहनात और जिमुल खर्च करने के बाद हो कोई नाम उपभेक्ताओं की जबान पर चढ़ ऐसे में यदि कोई निर्माता आपके हो नाम से मसालों को बनाने और बेचनेलो सो आप जास्तव में ही पत्थर से मारे जायेंगे। इससे बचने का सबसे आसान उपाययही है कि उत्पादन प्रारंभ करने से पूर्व ही कोई अच्छा-सा नाम अपनी फर्म का नाम  चिह्न (Brand and Name) भारत सरकार से रजिस्टर्ड करवा सम्मति बन जायेंगे और नकलची इनका प्रयोग नहीं कर समय तक आपके व्यापारिक हित सुरक्षित रहेंगे। पहली बार लिए आपके हित में सुरक्षित किया जाएगा। इस अवधि के बादगाहेंगे तो पुन: दस वर्षों के लिए नवीनीकरण करा सकेंगे। ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन का प्रधान कार्यालय मुम्बई में है और इसकी शाखाएँ कोलकाता तथा बंगलौर में भी है। आप जो ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड कराना चाहते उसकी आठ प्रतियों के साथ अपना आवेदन-पत्र अपने क्षेत्र से सम्बन्धित ट्रेडमार्क कार्यालय के अधिकारी को भेज दें। वैसे इस कार्य के लिए किसी वकील वा विशेष रूप से ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड करवाने वाली फर्म को सेवाएँ लेना अधिक सुविधाजनक रहता है। 

कन्ट्रोल जनरल ऑफ पेटेण्ट डिजाइन्स तथा ट्रेडमार्क
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऑफिसेज बिल्डिंग, क्वीन्स रोड, मुम्बई-400 001
दिल्ली राज्य में रहने वाले व्यक्ति अपने ट्रेडमार्क को रजिस्टर्ड कराने के लिए अपने आवेदन-पत्र तथा कागज़ात इस पते पर भेज सकते हैं-
ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन ऑफिस, ओखला इण्डस्टियल एस्टेट, नई दिल्ली-110 020
ट्रेडमार्क आवेदन-पत्र स्वीकृत होने पर और उसकी निश्चित फीस देने पर ट्रेडमार्क की रजिस्ट्री ऑफिस द्वारा प्रकाशित होने वाले 'ट्रेडमार्क जनरल में" में आपके द्वारा चुने ट्रेडमार्क का चित्र व विवरण छापा जायेगा। ताकि यदि आपके ट्रेडमार्क के विरुद्ध किसी को आपत्ति होगी तो उसे चार महीनों के अन्दर ही अन्दर अपनी आपत्ति
के विवरण, लिखित रूप में रजिस्ट्रार ऑफ ट्रेडमार्क' के ऑफिस में प्रस्तुत कर देने होंगे और उनके साथ निर्धारित फौस भी, उक्त कार्यालय में जमा करानी होगी। यदि आपके ट्रेडमार्क के विरुद्ध किसी ने आपत्ति उठायी तो आपको बो सकीनांके अन्दर इसका स्पष्टीकरण करना पड़ेगा। यदि रजिस्ट्रार ऑफ ट्रेडमार्क कीआपका पक्ष सन्तोषजनक प्रतीत हुआ तो वह आपके ट्रेडमार्क के रजिस्ट्रेशन का स्वीकृति प्रमाण-पत्र आपको दे देंगे। जिसे आप अपने उत्पादों में प्रयोग में ला  हैं। 

7. मसालों की गुणवत्ता कैसी होनी चाहिए (Maintain Quality)


उच्च कोटि का माल बिना प्रचार के ही विक जाता है। अत: प्रत्येक उद्योग में वही संस्थान सफल होता है जो सर्वश्रेष्ठ क्वालिटी का माल बनाता है और उस गुणवत्ता (Quality) को लगातार कायम भी रखता है। हमारे देश में या उद्योग साह, इस बात का ज्वलंत प्रमाण है। अपनी इसी एक विशेषता के कारण या युप सडस्ट्रीज हमारे देश में गत पचास वर्षों से शीर्ष स्थान पर लगातार बना हुआ है। मसाला उद्योग में भी उत्तरी भारत में एम डी०एच० की एक अलग शान है जिसके बनाये हुए, मसाले औरों की अपेक्षा बहुत कम विज्ञापन (Publicty) करते हुए भी सर्वाधिक मात्रा में और अपेक्षाकृत कुछ अधिक मूल्य पर आसानी से बिकते हैं और इसका एकमात्र कारण हैं उनकी क्वालिटी। पिसे हुए मसालों और रेडीमेड मिवस मसालों का प्रयोग समाज में आर्थिक रूप से सम्पन्न, सामाजिक रूप से अधिक जागरूक और अपने अधिकारी के प्रति सचेष्ट तथा पढ़े-लिखे जन समुदाय द्वारा ही प्राय: किया जाता है। यह वर्ग क्वालिटी के प्रति बहुत अधिक जागरूक होता है और यदि कोई भी वस्तु ज़रा भी अपने पूर्व स्तर से घटिया या बदलती हुई और असुविधाजनक पाता है, तो तत्काल उसका प्रयोग बन्द करके दूसरे निर्माता के उत्पादन अपना लेता है। अतः उत्पाद की गुणवता में की गई ज़रा-सी भी लापरवाही आपको नुकसान दे सकती है।


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8.मसाला उद्योग में  कच्चे माल की खरीद (Purchasing of Spices)


मसाला उद्योग में कच्चा माल मुख्य रूप से साबुत मसाले ही हैं। आप मात्र उन पीसते और पैक करते हैं। आप मसालों को छान-बीनकर साफ करवाकर उनकी गंदगी हटा सकते हैं और गीले  या सीले हुए मसालों को  सुखा भी सकते हैं परन्तु उनके गुण दोषों में कोई सुविधाजनक सुधार नहीं कर सकते हैं। आपके द्वारा तैयार किए मसालों की सम्पूर्ण गुणवत्ता, शुद्धता, सुगन्धि व स्वाद जिस एकमात्र बस्तु पर निर्भर करता है वह है आपके द्वारा प्रयोग किया गया साबुत मसाला। यही कारण है कि साबुत् मसालों को खरीद उन्हें इस उद्योग में सफलता और असफलता का सबसे सिद्ध होती है। सस्ते के चक्कर में पड़कर गन्दे-सन्दे, सड़े-गले, अधिक पुराने, वर्षा से भीगे हुए या सोलनयुक्त अथवा कोड़ा द्वारा खाए गये मसाले एक बार भी खीर ले तो वह व्यापारी अपनी जमी-जमाई बिक्री व्यवस्था को चौपट कर लेगा। आप जब भी कोई मसाला खरीदे, उसे पीसने और पैक करने के बाद वह आपका उत्पादन बन जाता है। ग्राहक और सरकार उसकी गुणवत्ता का जिम्मेदार केवल आपको और आपको संस्थान को ही मानते हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि आपने जो साबुत मसाला खरीदा था वह कैसा था, किस क्वालिरी का था, और आपने उसे कहाँ से खरीदा था। यदि आप सस्ते के लालच में पड़कर अथवा अपनी लापरवाही से या धोखे में पड़कर घटिया क्वालिटी के मसाले लेकर पीस लेते हैं तबन तो सरकार का स्वास्थ्य विभाग तथा खाद्य व आपूर्ति विभाग (Health and Food Department) ही आपको क्षमा करेंगे और न ही आपके ग्राहक ही। इसलिए मसाले खरदते समय पूर्ण सावधानी बरतना और अच्छी क्वालिटी के पूरी तरह सूखे हुए मसाले खरीदना इस उद्योग के लिये जरूरी है।


9. मसालों के उद्योग में बाज़ार पर पकड़  होनी चाहिए  (Market)


अपने उत्पाद की गुणवत्ता बनाये रखने के साथ-साथ आपको मार्किट की मजबूती बनाये रखने के लिए वायदे का पक्का होना भी जरूरी है। अपने ग्राहकों थोक व्यापरियों व सरकारी/अर्धसरकारी को आपरेटिव स्टोरों से जो आपके बनाये हुए मसाले बेचते हैं-से सम्पर्क करते रहे और वायदे पर माल अवश्य सप्लाई करते रहे जिससे आपके माल की निश्चित आपूर्ति बाज़ार में बनी रहे। उचित समय पर पैकिंग तथा काम आने वाली वस्तुएँ और कच्चा माल खरीद लीजिए, इस कार्य में जरा-सी लापरवाही आपके उत्पादन को हानि पहुंचा सकती है और तब आप सही समय पर बाजार में अपनी वस्तुओं की आपूर्ति नहीं कर पायेंगे। इससे आपकी सम्पूर्ण बिक्री व्यवस्था प्रभावित होगी। फलस्वरूप आपका आर्थिक नुकसान तो होगा ही, आप समय पर अपने सप्लायरों को पेमेंट भी नहीं कर पाएंगे। यह जरा-सी असावधानी अच्छे खासे चलते हुए उद्योग-व्यापार की जड़ें हिला देने के लिए पर्याप्त है।

10.ममसालों  व्यवहार कुशलता (Intelligence and Behaviour)


उद्योग छोटा हो या बड़े स्तर का कोई अगर-मगर या किन्तु-परन्तु नहीं चलती। किसी भी क्षेत्र में चाहे वह मसालों और पैकिंग मैटीरियल की खरीद हो या पिसाई और पैकिंग अथवा फिर बिक्री व्यवस्था में की गई ज़रा-सी ढोल नुकसान और केवल नुकसान ही देती है। अपनी व्यवहार कुशलता बनाये रखना एक उद्यमी की सफलता का प्रथम गुण होता है। उद्योग चाहे कोई भी हो और किसी भी स्तर पर चलाया जाये सफलता के लिए आवश्यक है कि आय और व्यय का लाभ-हानि का, लागत खर्च व प्राप्ति का पूर्ण हिसाब रखा जाये। श्रमिकों से सही सम्बन्ध बनाकर रखें जाएँ जिससे उत्पादन में बाधा न पड़े और जहाँ तक सम्भव हो किसी को भी नाराज़ न किया जायें। बाज़ार में अपनी साख को बनाए रखने के लिए जिन लोगों से आप माल खरीदते हैं उन्हें निश्चित समय पर पेमेंट कर दिया जाएँ और जिनसे पैसा लेना है उनसे समय पर प्यार से धन वसूल करने की चेष्टा की जाएँ। लड़ना, अकड़ना, झगड़े खड़े करना या फालतू के पचड़ों में पड़ना, व्यापारी या उद्योगपति को शोभा नहीं देता, क्योंकि ये
आदतें जमे-जमाए व्यवसाय को भी तबाह कर सकती हैं। मसाला निर्माण उद्योग एक उपभोक्ता सामग्री उद्योग हैं, बल्कि वास्तविकता तो यह है कि यह मात्र एक उद्योग ही नहीं वरन् व्यवसाय भी है। यही कारण है कि इस उद्योग की सफलता में उपरोक्त सभी कारकों के साथ-साथ सुन्दर व मनमोहक पैकिंग, भरपूर ओर प्रभावशाली प्रचार तथा विस्तृत क्षेत्र में सुगठित रूप से व्यवस्थित बिक्री व्यवस्था सबसे पहले महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः इन पर पूर्ण ध्यान देना और अवसर अनुकूल सुधार व परिवर्तन करते रहना इस उद्योग में सफलता का मूल मन्त्र तो है ही आपका परम कर्त्तव्य भी है। यदि आप उपरोक्त बातों का सही पालन करते हैं तो आप एक सफल
उद्योगपति या व्यवसायी बन सकते हैं।

मसाला उद्योग शुरू करने से पहले मशीनों का चयन क्यों है जरुरी  (Selection of Plant and Machineous)


मसाला उद्योग एक ऐसा उद्योग है जो छोटे स्तर पर शुरू किया जा सकता है। इस कार्य को प्रारम्भ करके अनेक व्यक्ति न केवल अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं वरन धीरे-धीरे अपने कार्य में सतत् प्रगति करके आज एक सफल उद्योगपति बन चुके है। चाहे कितने भी बड़े स्तर पर इस उद्योग को क्यों न लगाया जाएँ, वास्तव में अधिक
जटिल कीमती मशीनों की इस उद्योग में आवश्यकता पड़ती ही नहीं। इस उद्योग की मुख्य मशीने तो मसाला पीसने के ग्राइण्डर्स (Grinders) ही है। बिजली से चलने वाले विविध क्षमता के ये ग्राइण्डर्स पांच हज़ार से लेकर बीस हज़ार रुपये तक विविध मूल्य श्रृंखलाओं में आते हैं और छोटे ग्राइण्डर्स तो घरेलू विद्युत (Domestic Light)
से ही चल जाते है। हाथ से चलाया जाना वाला ग्राइण्डर्स तो मात्र पांच या दो हजार  रुपये में ही आ जाता है। इस प्रकार इस उद्योग में मशीनों और उपकरणों पर तो अधिक लागत नही आती है तथा जो भी रकम लगती है वह साबुत मसाला को खरीदने में कार्यकारी पूँजी (Running Capital) के रूप में ही लगती है। इस उद्योग को छोटे स्तर पर कार्य करते हुए भी सर्वाधिक मुनाफा तब ही कमाया जा सकता है जब आप विभिन्न उपयोगों के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए विशिष्ट मसाले (Ready made mixed spices) बनाएँ और बेचें। छोटे स्तर पर कार्य करने के लिए माइक्रोपल्वीलाइजर ( (Micropulbilizer) छोटे स्तर पर कार्य करते समय आप अपनी कार्यशाला या फैक्ट्री में दो-तीन ग्राइण्डर्स तो लगाएंगे ही एक माइक्रोपल्वीलाइजर (Micropullbiliger) भी अवश्य लगाए। माइकोपल्लीलाइजर पाइण्डर्स का अधिक विकसित और तेजी से कार्य करने साला रूप तो है ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एक बार में ही सख्त से साल मसाले को एकदम बारीक पाउडर के रूप में पीस देता है। चित्र- छोटे स्तर पर कार्य करने के लिए "पाईन्डर" मसाला उद्योग में प्रयुक्त की जाने वाली मुख्य मशीन 'पल्वराईजर' मसालों की पिसाई हेतु सर्वाधिक उपयुक्त तथा सफल मशीन मानी जाती है। इस मशीन में पत्थर का कोई पार्ट नहीं होता, तथा सम्पूर्ण पिसाई, लोहे के वीटर और लाइनर्स के बीच होती है। इस एक ही मशीन से अनेकों प्रकार की वस्तुएँ पीसी जा सकती है।
 जिन प्रमुख वस्तुओं की पिसाई हेतु वह मशीन सर्वाधिक उपयुक्त पाई गई है वे है- सभी प्रकार के मसाले, चावल, गेहूँ, दाल, काफी, तम्बाकू, सुपारी, रसायन, साबुन, चक्की, गीली दाल आदि। इस मशीन से आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ, पेड़ की छाल, हर्रा, बहेड़ा, आंवला तथा पीपर भी आसानी से बारीक से बारीक पीसे जा सकते हैं। दो, तीन, चार अथवा अधिक वस्तुओं का मिश्रण भी इसी मशीन से आसानी से हो जाता है जिसके लिए अलग से मिक्सर मशीन की आवश्यकता नहीं होती इसके अतिरिक्त इस मशीन की अन्य प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-
1. यह मशीन जगह कम घेरती है, करीब 10 वर्ग फीट की जगह संपूर्ण मशीन हेतु काफी है।
2. इसे अशिक्षित महिलाएँ/पुरुष भी आसानी से चला सकते हैं क्योंकि यह चलाने में अति आसान है।
3. इसमें मिर्ची के बाद शक्कर अथवा अन्य जो भी वस्तु आप पीसना चाहें, पीसी जा सकती है क्योंकि मशीन साफ हो जाती है। इसमें एक वस्तु दूसरे में नहीं मिलती।
4. यह मशीन व्यवसायिक कार्य के साथ-साथ घरेलू आवश्यकताओं की पिसाई के काम में भी आ सकती है।
5. पिसाई के समय इस मशीन में ठंडी हवा बने रहने के कारण पीसे जाने वाले पदार्थ का असली रंग, सुगन्ध और स्वाद सुरक्षित रहता है। इस बात की गारंटी पत्थर की चक्की में नहीं होती।
6. इस मशीन से पिसी हुई वस्तु को छानने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि\ वस्तु स्वयं छनकर जाली के माध्यम से बाहर आती है।
7. पत्थर की चक्की को बार-बार टांकने की आवश्यकता होती है जिससे पीसी हुई किसी भी वस्तु में पत्थर के कण आ जाना स्वाभाविक है। परन्तु इस मशीन में पिसाई लाईनर्स एवं वीटर की तेज़ रफ्तार (6000 आर. पी.
एम.) से होने की वजह से उत्तम क्वालिटी का उत्पाद निकलता है। वर्तमान में इस मशीन (पल्वराईजर) के मुख्य मॉडल जो मसाला उद्योग स्थापित करने के इच्छुक लघु व्यवसाइयों के लिए उपयुक्त हैं.
 निम्नानुसार है
1. 2 हा. पा. की मोटर वाला पल्पराइंजर-5 से 10 कि०गा० प्रति घंटा मसाले पीसने की क्षमता (विद्युत मोटर तथा समस्त खर्चा सहित कीमत लगभग 15,000/- रु.)
2. 3 हा. पा. की मोटर वाला पल्पराइंजर-15 कि०गा० प्रति घंटा मसाले पीसने की क्षमता (विद्युत मोटर तथा समस्त खर्चा सहित कीमत लगभग
20,000/- रु०)
3. 5 हा. पा. की मोटर वाला पल्पराइंजर-20 कि०गा० प्रति घंट मसाले पीसने की क्षमता (विद्युत मोटर तथा समस्त खर्चा सहित कीमत लगभग 25,000 रु.)
4. 10 हा, पा. की मोटर वाला पल्पराइंजर-60 कि०गा० प्रतिघंटा मसाले पीसने की क्षमता (विद्युत मोटर तथा समस्त खर्चा सहित कीमत लगभग 35,000 रु०)
यह मशीन पोल्ट्री तथा कैटल फीड जैसे- मुर्गी दाना, मछली दाना आदि के लिए भी उपयोगी है। पल्चराईजर का मुख्य कार्य हाता है मसालों को कूटना। प्लवीलाइजर के अपने आधार पर निरंतर घूमने वाले बड़े रॉड (Central rod) में स्टील की मोटी मोटी परन्तु आकार में काफी छोटी सैकड़ों पत्तियाँ लगी होती है। जब यह माइक्रोपल्वीलाइजर चलाया जाता है तब यह बीच का रॉड अत्यंत तीव्र गति से घूमने लगता है और ये स्टील की पत्तियाँ पल्चीलाइजर मे भरे मसाले पर तीव्र गति से भीषण चोटें मारती हैं फलस्वरूप मसाला बारीक पाउडर के रूप में टूटने लगता है। निरन्तर घूम रहे रॉड के कारण पल्चीलाइजर के अन्दर वायु का एक चक्र (Air Circle) बन जाताहै। फलस्वरूप बारीक पाउडर के रूप में पिस चुका मसाला तो उड़कर एक स्थान पर एकत्र होता रहता है और मोटा रह गया मसाला कूट-पीसकर पाउडर बन जाने के लिए वहाँ पड़ा रह जाता है जो अगले दस-बीस सैकिण्ड में पिस जाता है। ग्राइन्डर और आय चक्की के समान ही इस पल्वीलाइजर में भी पीसा जाने वाला मसाला भरने
के लिए एक विशिष्ट पात्र लगा होता है जिसमें एक बार में क्षमता के अनुरूप कई किलोग्राम मसाला भर दिया जाता है ओर उस पात्र से थोड़ा-थोड़ा मसाला स्वयं मशीन के अन्दर जाता रहता है और पिसकर दूसरे द्वार से बाहर निकलता रहता है। इस स्तर पर कार्य करते समय आपके लिए छोटे माप का पल्वीलाइजर लेना ही उचित रहेगा जिन्हें सामान्यतः लेबोरेट्री पल्वीलाइजर्स या लेब माइक्रोपल्वीलाइजर (Lab Micropullbiliger) कहा जाता है 


स्माल स्केल उद्योग के लिये मशीनें (Machineries for Small Scale Industry)


मसालों के उद्योग छोटे स्तर से शुरू करके आप बड़े स्तर तक शुरू तक सकते हैं। आप किसी भी स्तर तक इसको बढावें यह हमेशा स्माल स्केल इण्डस्ट्रो (Small Scale Industry) के अन्तर्गत ही आता है और इसे वे सभी सुविधाएँ सहज ही मिल जाती हैं जो भारत सरकार लघु उद्योगों को प्रदान करती है। बहुत बड़े स्तर पर कार्य
करते समय बड़े माप के इण्डस्ट्रियल माइक्रोपल्वीलाइजर्स (Industiral or Heavy Duty Micropullbiliger) लगाए जा सकते हैं या अधिक मात्रा में छोटे पल्वीलाइजर्स और बड़े माप के ग्राइण्डर्स लगाकर भी काम चलाया जा सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि आप इस उद्योग को किसी भी स्तर पर क्यों न करे जितना धन आपकी मशीनों और उपकरणों पर लगता है उससे कई गुना अधिक धन आपको विविध मसाले खरीदने के लिए कार्यकारी पूँजी (Running Capital) के रूप में लगाना ही पड़ेगा। पल्वराईजर में मसाले भरकर मसाले भूनने का कार्य तो किया ही जा सकता है। हैण्डिल घुमाकर उन्हें परस्पर अच्छी तरह मिलाया भी जा सकता है। गरम मसाले में पिलाए जाने वाले विविध मसालों को भूनने के लिए इस मशीन का प्रयोग करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। इस मशीन में मसाले भूनने पर उनकी सुगन्धि तो उड़ती ही नहीं वे परस्पर अच्छी तरह मिल भी जाता हैं। यदि आप अचारों के लिए मसाले तैयार करना चाहते हैं तो यह मशीन आपके लिए परम उपयोगी रहेगी।

 रेडीमिक्स मसालों के लिये मिक्सर (Mixer for Ready Mixed Spices)

साबुत मसालों को परस्पर मिलाने वाली मिक्सर मिक्स मसालों के लिये पयोगी है। विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ और चाट आदि के लिए तैयार मिक्स मसाले नाँति-भाँति के गर्म मसाले ओर सभी प्रकार के चूर्ण आदि अनेक मसालों को निश्चित अनुपात में मिलाकर मिक्सर से ही तैयार किए जाते है। विभिन्न पिसे हुए मसालों को कार्मूले में दिए गए अनुपात के अनसार मिलाकर बनाए गये मरातों के स्वाद और लज्जत में वह बात नहीं आ पाती जो बाज़ार के रेडीमेड मिक्स मसालों में होती है। स्वाद का अंतर तो मसालों की मात्रा के कारण होता है और न ही कच्चे माल के रूप में प्रयोग किये जा रहे मसालों की क्वालिटी के कारण। एक ही फार्मूले और समान गुणवत्तायुक्त मसालों का प्रयोग करने पर भी स्वाद में उत्पन्न अंतर ही मिक्सड रेडीमेड मसालों की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है। मसालों के स्वाद का यह अंतर ही इस उद्योग का सबसे बड़ा रहस्य (Secret) है और सफलता का आधार भी।

मसालों में स्वाद का यह अंतर उत्पादन प्रक्रिया में अपनाई गई एक विभिन्न तकनीक द्वारा पैदा किया जाता है। कोई भी चूर्ण अथवा रेडीमेड मिश्रित मसाला बनाते समय आप उसमें मिलाए जाने वाले सभी रचकों को अलग-अलग बारीक मत पीसिए। हल्दी के समान बहुत कठिनाई से पिसने तथा बड़ी इलायची और सौंठ जैसे बड़े आकार के कड़े मसालों को तो काफी मोटा-मोटा कूट-पीस लीजिए। काली मिर्च जैसे अन्य मसालों को साबुत ही लीजिए ओर फार्मूले में दी गई मात्रा के अनुरूप सभी मसालों के एक जगह अच्छी तरह मिलाने के बाद पीस लीजिए। इस प्रकार एक साथ पीसे हुए मसाले कूटने-पीसने पर सभी मसालों के रचक परस्पर अच्छी तरह एक-दूसरे से मिल जाते हैं और श्रेष्ठ क्वालिटी का उत्तम गुणवत्तायुक्त मिक्स्ड मसाला तैयार हो जाता है। यद्यपि अधिकांश मसाला निर्माता पोसने के लिए ग्राइण्डर्स का ही प्रयोग करते है क्योंकि ये सस्ते तो होते ही हैं आसानी से हर स्थान पर मिल भी जाते है। परन्तु ग्राइण्डर्स का सबसे बड़ा दोष यह है कि इनमें मसाला पीसते समय दोनों पाटों की
रगड़ और उस रगड़ से उत्पन्न गर्मी से मसालों के तेलीय अंश बडी सीमा तक जल जाते है। इस प्रकार मिर्च और धनिए जैसे कुछ मसालों के स्वाद को तेज़ी और सुगन्ध में कुछ न कुछ कमी हो जाती है। गरम मसालों में प्रयोग की जाने वाली लौंग, इलायची जैसी वस्तुएँ तो लगभग बर्बाद ही हो जाती है। यही कारण है कि बड़े निर्माता
तो अब ग्राइण्डर्स के स्थान पर विविध पानी के पल्वीलाइजर्स तथा माइक्रोपल्वीलाइजर्स का ही प्रयोग करते हैं। छोटे स्तर पर कार्य प्रारंभ करते समय आप गरम मसाले जैसे कीमती मसाले परम्परागत तरीके से हाथ से खल्लड-मूसलों में भी कूट सकते हैं। इस कार्य के लिए सबसे अच्छा रहता है बिजली की शक्ति से चलने वाला खरल का प्रयोग मसाला उद्योग के साथ-साथ चूर्ण निर्माण उद्योग और दंत मंजन निर्माण में भी इन खरलों का ही प्रयोग किया जाता है।

मसाले व मसाला उत्पादों की पैकिंग कैसे करें  (Packing of Spices and their Products)


मुख्य रूप से जो मसाले हम निर्यात करते है उनमें, लौंग, इलायची, हल्दी, अदरक, मिर्ची, जीरा व धनिया है। इन मसालों को बेहतर कन्ज्युमर पैंकिग में पैक करना उत्पाद की क्वालिटी को बढाना है। लचकदार व खूबसुरत कन्ज्युमर पैंकिग जहाँ लाने व रखने में सुविधाजनक होती है, वहीं उसकी पैंकिग खुबसूरत होने से यह अपने भारतीय मानक को बेहतर दर्शाती है और विश्व बाजार में अपनी छाप छोड़कर हमें अच्छी आय का जरिया भी बनाती है। विदेशी बाजार के अलावा स्वदेशी बाजार में भी फ्लेक्सिवेल कन्ज्युमर पैंकिग की अच्छी डिमाण्ड होने के फलस्वरूप (सी एफ टी आर आई ) मैसूर, इस तरह की पैकिग व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिये नई तकनीक का विकास कर रही है। जहाँ तक मसालों की पैंकिग का प्रश्न है यह सभी जानते है कि मसाले एक
कन्यूमर उत्पाद है। इनकी जरूरत हर घर के खाने पीने की सभी वस्तुओं में किया जाता अत: इनकी बिक्री पर पैंकिग का बहुत प्रभाव रहता है। यदि दुकान पर एक ही तरह का मसाला दो-तीन तरह की पैंकिग में रखा होगा तो ग्राहक ब्राँड नेम के साथ साथ बेहतर पैकिंग वाला मसाला ही खरीदेगा, अतः प्रत्येक उत्पादक को मसालों की
स्वालिटी के साथ-साथ सुन्दर व मजबूत पैंकिग व्यवस्था का भी ध्यान रखना होगा।

मसालों की पैंकिग कैसे करें  (Proper and Best Packing )


सभी तरह के पिसे हुए मसाले तैयार करने एवं विविध उपयोगों के लिए मिश्रित मसाले बनाने और पैक करने के उद्योग में आप खाद्य-पदार्थ के रूप में प्रयोग करने के लिए मसालों का निर्माण करते है। मसालों का निर्माण आप किसी भी स्तर पर करें, जहां तक संभव हो असालो को निदोष, लाने-ले जाने में सुविधाजनक और यति भणबूत तथा सुन्दर पैकिग अवश्य कौजिए। आपके द्वारा किए गए मसालों को गारक पैकिग खोलने के बाद ही देख और संघ सकता है तथा उसके स्वाद और गुणवता का पता तो प्रयोग करने के पश्चात ही लगा पाता है। परन्तु सामान्य ग्राहक किसी पिसे हुए हिस्सा बन्द मसाले (Packed Spice) को खरीदने के लिए जिस चीज को देखकर खरीदने का मूड (mool) बनाता और एक बड़ी सीमा तक उस मसाले को चालिती और गुणवत्ता का अनुमान लगाता है, वह उसकी पैकिग ही जैसे पिसे हुए मशक को पैकिग पोलीथीन की थैलियो में की जाती है उसी
तरह बहुत छोटे स्तर पर कार्य करते समय आप अन्य मसाले भी पोलीथीन की छोटी छोटी थैलियों में पैक कर सकते है। परन्तु इस प्रकार की पैकिग की नकल बहुत ही आसानी से हो जाती है। और प्राय थैलियां कर-फट भी जाती है। यही कारण है कि यदि आप इस बीस हजार रूपए लगाकर भी छोटे स्तर पर यह कार्य कर रहे है तब भी मजबूत मोरे कागज को ब्लाक द्वारा रुपवा कर उसके विशेष आकार के चौकोर पाउच या लिफाफे बनवाकर उनमें ही पैक कीजिए। कुछ बड़े स्तर पर कार्य करते समय पतले गले के रुपे हुए डिल्चों में मसाले पैक करना सर्वश्रेष्ठ रहता है
यद्यपि इस व्यवस्था पर प्रारम्भ में डिजाइन व ब्लाक बनवाने और इक्ठे डिब्बे तैयार कराने पर कुछ हजार रूपए खर्च हो जाते हैं। आप मसाले आदि किसी भी प्रकार पैक करें दो बातों को अवश्य याद रखिए-मसालों पर मौसम का प्रभाव न पड़े, वे सीलें (mous) नही और उनकी सुगन्धि भी न उड्ने पाए। यही कारण है कि कागज के पाउच या गले के डिब्बे में मसाला भरने से पूर्व उसे पोलीथीन की थैली में भरकर सोल कन्द (sealing) कर दिया जाता है। और फिर उस बन्द थैली को पाउच या डिकों में भरकर पैकिंग की जाती है। पौकिग को व्यावहारिक जानकारी और अपने उत्पादन की अच्छी व टिकाऊ पकैग के लिए सबसे आसान तरीका है अन्य मसाला निर्माता संस्थानों का सूक्ष्म निरीक्षण। इसके लिए आप बाजार में अधिक लोकप्रिय मसालों के कुछ पैकेट खरीद लीजिए और खोलकर उनके पाउच, डिल्चे और पैकिंग में प्रयुक्त थैली आदि का अवलोकन कीजिए। पैकिंग में किसी भी उत्पादक को अन्धी नकल मत कीजिए, उनकी विशेषताओं को अपनाइए और कमियों को छोड़ दीजिए। यदि आप गृह उद्योग
स्तर अथवा कुछ बड़े स्तर पर उद्योग प्रारम्भ कर रहे हैं तब पैकिग व्यवस्था को बेहतर ज गुणवर्थक बनाने के लिए निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना होगा-

पिसे मसालों की पैकिंग कैसे करें  (Packing of Powdered Spices)


पिसे हुये मसाले बहुत ही सूक्ष्मग्राही, स्वरूप बदलने वाले अपनी गुणवत्ता में एकदम कमी हो जाने वाले, उडनशील तेलों की उपलब्धता में कमी हो जाने वाले, सुक्ष्म जीवाणुओ में कमी हो जाने वाले, केक (ठोस रूप) में बने रहने पर लाने-लेजाने में टूटने वाले होते है। जैसे रोशनी में हरे रंग की काली मिर्च व लाल मिर्च अपना रंग छोड़ देने पर उतने महत्वपूर्ण नही रह पाते तथा मसालों से सुगन्धित तेलों का उड़ जाना उनकी गुणवत्ता में कमी ला देता है। अत: मसालों में उपर्युक्त हास न हो, इसके लिये आपको निम्न प्रकार की सावधानी रखकर बेहतर पेंकिग व्यवस्था बनानी होगी, इसके लिये निम्न बातों का ध्यान रखना होगा ताकि मसालों की अपनी गुणवत्ता लम्बे समय तक बनी रह सके।
1. इस तरह की व्यवस्था बनानी होगी की मसालों में खराबी व रिसाव न हो,
2. यह सावधानी रखनी होगी कि मूल मसालों में जीवाणु व भौतिक रिसाव हो। इसके लिये प्रर्यावरण की स्थिति जैसे, नमी, लाईट, व ऑक्सीजन की सही व्यवस्था बनानी होगी, इसका मतलब होगा पैकिंग की सीमा रेखा बनाना
3. उड़नशील तेलों का बचाव व बाहरी गन्ध के प्रभाव को रोकना,
4. अच्छे तेल व चिकनाई की रोकथाम व बचाव करना,
5. दीमक आदि बाहरी कीट-पतंगो के आक्रमण को रोकना,
6. मसालों का उत्पाद इस प्रकार का करना होगा कि ये सस्ते व आसानी से उपलब्ध हो सके।
7. मसालों को बेचने मे भी बाहरी पैकिग इतनी खूबसुरत होनी चाहिए कि ग्राहक आसानी से खरीद सके।
8. मसालों के निर्यात व आयात के लिये 'फड कानून' का ध्यान अवश्य रखना
होगा। यदि आप उपर्युक्त नियमों का सही पालन करते है तो आपके द्वारा तैयार मसाले देशी तथा विदेशी बाजार में आसानी से बिक पाऐगें तथा उनकी गुणवत्ता बड़े लम्बे समय तक बनी रह सकेगी। पिसे हुये मसालों की विशिष्ट पैंकिग की श्रेणी तक पहुचने व विस्तृत पैकिंग व रखरखाव के लिये उन्हें 100 ग्राम 11 x 14CM साईज के कन्ज्यूमर पैक में विभिन्न लचकदार पैंकिग में पैक करने के लिये नीचे कुछ निर्देश दिये गए है यदि इन निर्देशो का सही पालन किया जाये तो मसालो की गुणवत्ता लम्बे समय तक त्योंकी त्यों बनी रहती है विशेषकर काली मिर्च, हल्दी, जीरा, धनिया, व मिर्च पाऊडर इस श्रेणी में आते है क्योकि ये पिसे मसाले सीघ्र ही सीलन पकड़ लेते है। इन पर नमी के प्रभाव को रोकने के लिये (वाटर वैपोर ट्रान्समिशन रेट) WVTR नीचे दिखाया गया है उसके अनुसार पालन करना नितान्त आवश्यक है।
1. 250 गेज की छपी कम ठोस प्लास्टिक (LDPE) नमी की मात्रा (6.0)
2.  350 गेज (Gauge) (LDPE).(5.0)
3. 200 गेज (Gauge) की उँचे दाब की प्लास्टिक (HDPE)(3.0)
4. 200 गेज (Gauge) की पोलीप्रोपलीन (P.P) (4.6)
5. 350 गेज (Gauge) की पोलीप्रोपलीन (P.P) (3.0)
6. 300 मैक्सट सिलौफौन में (8.0)
7. दो तह की पारदर्शी कपड़ा अन्दर तथा बाहर 250 गेज की (LDPE) में (60)
8. 300 गेज की सिलौफोन अन्दर (15.7) तथा 250 गेज की छपी LDPE बाहर (6.0) डबल पाउच मै,
9. 150 गेज के पोलीथीन से लेमीनेटेड किया हुआ सेलोफोन पर (7.0)
10. 150 गेज के पोलीथीन से 12 माइक्रोन के पोलीस्टर को लेमीनेटेड करनेन पर (0.8)
11. 150 गेज के पौलीथीन से 0.009 मि०मी गेज के पेपर या अल्युमीनियम फाईल को लैमीनेट करने पर (NIL) रहता है।
अतः सबसे बढिया पैंकिग करने के लिये उपरोक्त मैटिरियल की पैंकिग इस्तेमाल करें तो मसालो की गुणवत्ता व नमी रोधक वैरियर लम्बे समय तक बनी रहती है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सी पैंकिग करे, क्योंकि जहां 250 गेंज की LDPE से नमी (6.0) रहती है वही लेमीनेटेड पेपर या एल्युमिनियम फाईल की पैंकिग से नमी की मात्रा (NIL) हो जाती है। अन्त में कहने का तात्पर्य है कि मसालों की बेहतर बिकी व्यवस्था बनाये रखने के लिए सुन्दर पैंकिग के साथ-साथ नमी रहित पैंकिग व्यवस्था का भी ध्यान रखना नितान्त आवश्यक है।

मसालों की पैकिंग व रखरखाव कैसे करे ?


साबुत मसालों के भण्डारण के लिए जूट की बोरियाँ व्यवहारिक रूप से इस्तेमाल की जाती है। एक धागे या दो धागों की बुनी हुई जूट की बोरी मसालों की कीमत के अनुरूप ही प्रयोग की जाती हैं। एक धागे या दो से अधिक धागों से बुनी बोरियों में धागों की दूरी 1.2%, 3.5% तथा 4.6% के अनुरूप होती है ताकि इससे मसालों का रिसाव न हो सके व बाहरी कीटाणु बोरियों के अन्दर जाकर मसालों को नुकसान न पहुँचा सके । कभी-कभी डबल बोरियाँ भी इस्तेमाल की जाती हैं ताकि नमी की रोकथाम मसालों में बनी रहे। पोलीथीन चढ़ी जूट की बोरियाँ तथा प्लास्टिक की बुनी हुई बोरियाँ (LDPE Woven Sacks) बोरियाँ भी इस्तेमाल की जाती है। ताकि भण्डारण के समय नमी का असर मसालों पर न हो पायें। इलायची के लिए पोलीथीन की परत चढ़ी प्लाईउड के बक्से इस्तेमाल किये जाते है। कहीं-कहीं कागज़ तथा कपड़े के बैग भी इस्तेमाल किये जाते हैं। भंडारण के दौरान साबुत मसालों में उनके गुण व खुशबुओं की रोकथाम के लिए बाहरी कोटिंग की जाती है। ताकि पिसे मसालों में पिसाई के दौरान बोरी या पैकिंग बैग का मुँह खोलने तक मसालों की सुगन्ध व गुणवत्ता बनी रहे। इस प्रकार साबुत मसालों में नमी व कीटों से बचाव करने के लिए अधिक ध्यान न भी दिया जाये परन्तु पिसे मसालों को बेहतर व सुंदर पैकिंग के लिए कई तहो के कागज़ के बैग, कपड़े के बैग, टिन के डिब्बे, प्लास्टिक की बुनी बोरियों का ही इस्तेमाल किया
जाना चाहिये। पिसी हुई काली मिर्च को 75 माइक्रोन की पोलीथीन चढ़ी बरलब (Burlab) थैलों में पैक किया जाता है। इसमें नमी केवल बरसात के दिनों में मुश्किल से 0.4% तक ही जा सकती है अर्थात् ना के बराबर, सूखी पिसी मिर्च जो कि बहुत ही हल्की होती है कि पैकिंग अधिक ठोस (घनापन) वाली बोरियाँ व बैग में की जाती है क्योंकि
इसमें 10% नमी 2.5 कि०ग्रा० वर्ग से०मी० का प्रेशर होता है। इसका घनफल इसके वास्तविक मूल्य से घटकर 78% रह जाता है। दबाव देकर 10 से 25 कि०ग्रा० के 300 गेज की पोलोथीन बैग में इसकी पैकिंग की जाती है।

मसाला तेलों व उड़नशील तेलों की पैकिंग कैसे करे


मसालों के तेल व उड़नशील तेल मसालों से घुलनशील प्रक्रिया के द्वारा निकालकर प्राप्त किये जाते हैं। ये केवल निर्यात की वस्तुयें है। ये उड़नशील होते हैं अतः इनकी पैकिंग बहुत ही सुरक्षित व सही ढंग से की जाती है, इनमें मुख्य इलायची, काली मिर्च, मिर्च, हल्दी व अदरक मुख्य मसालों के तेल है, भारतीय मानक के अनुरूप ये उत्पाद बहुत ही सख्ती से टाईट किये हुए काँच के बर्तनों, शुद्ध एल्युमिनियम व सही माप के टिन के डिब्बों तथा फ्रूड ग्रेड (HDPE) पोलीथीन के डिब्बों में जो ऊपर तक भरा रहे में पैक किये जाते हैं। इन उत्पादों को प्रकाश से दूर तथा ठंडी जगहों में रखा जाता है। आजकल ये उड़नशील मसालों के तेल बहुत पतले मुँह की एल्युमिनियम के 1 से 5 लीटर के जारों में पैक किये जाते है।
प्लास्टिक (PET) की बोतलों में भी इन्हें पैक किया जाता है, इनके बाहरी रख-रखाव उड़नशील तेलों को रोकने में समर्थ होते हैं इसलिए रंगीन प्लास्टिक की बोतलें व जार ही विशेष रूप से प्रयोग किये जाते हैं। मसालों के तेल मुख्तया 5 से 25 लीटर की एल्युमिनियम की जार चौडे मुँह के (HDPE) प्लास्टिक के जारों में पैक किये जा रहे हैं, प्रकाश में बचाव के लिए इन्हें ठंडी जगह पर रखा जाता है। कीट-पतंगों की रोकथाम व सुगन्ध से बचाव मसालों व मिक्स-मसालों में कीट-पतंगों की समस्या मुख्य रूप से होती है। अतः मसालों को पैक करने से पूर्व इनके बचाव की व्यवस्था आवश्यक होती है विभिन्न तरह के कीटों का इन पर आक्रमण हो जाता है अत: मसाला उत्पादों को कीटों से रोकथाम के लिए उन पर 32 ग्राम घनमीटर के हिसाब से मिथाइल ब्रोमाइड की खुशबु का छिड़काव 24 से 48 घंटे के बीच करना चाहिये या एल्युमिनियम फॉसफाइन 3 से 6 ग्राम प्रति घनमीटर के हिसाब से सात दिन के अंतराल पर करना चाहिये। कुछ मसालों को लचकदार पैकिंग में भरकर पैक कर देना चाहिये। कुछ मसालों पर दवा का छिड़काव पहले व कुछ पर पैक करने के बाद भी किया जा सकता है.

मसलों  के उद्योग में विभिन्न मसालों की पैकिंग की जा सकती है। 


साबुत मसाले मसाले व चटनियों को पैकिंग व्यवस्था के लिए दिशा-निर्देश इस प्रकार होने चाहिए कि लम्बे समय तक रखने पर भी वे अपनी गुणवत्ता व विशिष्टयाँ बनाये रख सके, मसाले हमेशा नये व स्वच्छ, जूट, कपड़े, पेपर, पोलीथीन, प्लास्टिक के कोटेड बैग में ही पैक किये जाय। यदि खरीदकर डबल बैग में पैकिंग करनी है तो बाहरी
बैग पुराना व अन्दरूनी बैग पूर्णतया स्वच्छ होना चाहिये। बैग पूर्णतया कीट व नमी रहित होना आवश्यक है तथा इस पर किसी भी तरह की गन्ध नहीं होनी चाहिये। साबुत काली मिर्च काली मिर्च को साफ, स्वच्छ नमी रहित व बड़े बैग में पैक किया जाना चाहिये। (LDPE) प्लास्टिक की परत चढ़ा जूट या (HDPE Wovan Sacks)
प्लास्टिक की बोरी इसके लिए सर्वोत्तम रहती है जिस पर किसी भी तरह की बाहरी गन्ध न जा सके। बैग का मुँह मशीन या हाथ से सिया जाना चाहिये।

साबुत अदरक की पैकिंग   

अदरक को दोहरी तह तथा एक तह के जूट बैग में जिस पर जलरोधक तह लगाई गई हो, में पैक किया जाता है। इस पर अन्दर से कपड़े या प्लास्टिक की लैमीनेशन होनी चाहिये। साबुत अदरक प्लास्टिक की पतली परत चढ़े नारियल या ताड़ की रस्सी से बने बैगों में भी पैक किये जा सकते हैं। पिसा अदरक पिसी हुई अदरक साफ-सुथरे व अच्छी तरह बन्द व सील किये हुए टिन के डिब्बों, शीशे के मर्तबान, कागज़ के डिब्बों में जो अच्छी तरह जलरोधक व नमौरोधक हो तथा प्लास्टिक की थेलियों में जो PET/EVA या BOPP की बनी हो में पैक किया जाना चाहिये ताकि अदकर पर कोई बाहरी गन्ध अपना असर न कर सको पिसी हुई अदरक को आधा किलो, 1 किलों तथा 2 किलो की पैकिंग में पैक करना सुविधाजनक रहता है। इस तरह की पैकिंग को कार्डवोर्ड तथा लकड़ी के बक्सों में
आसानी से पैक किया जा सकता है।

करी पाउडर की पैकिंग कैसे करें 

करी पाउडर साफ-सुथरे टिन के डिब्बों व काँच के मर्तबानों में पैक किया जाता है। पेपर के बने बैग जो अच्छी तरह जलरोधक व नमीरोधक हों तथा प्लास्टिक की थैलियाँ जो PET/EVA या BOPP/EVA की बनी हो, तथा जिन पर बाहरी सुगन्ध कोई असर न कर सके में पैक किया जाना चाहिये। कार्डवोर्ड के डिब्बों में सुविधाजनक ढंग से पैक करने के लिए इन्हें %, 1 तथा 2 किलो की पैकिंग में पैक किया जाता है। मिर्च करी पाउडर की तरह मिर्च पाउडर की पैकिंग भी उसी अनुरूप से साफ, स्वच्छ PET/LDPE या BOPP/LDPE से लेमीनेट किये हुए बैगों में करनी चाहिए। केशर सैफरोन (केशर) बहुत ही मंहगा मसाला होता है। इसकी पैकिंग जलरोधक व नमीरोधक साफ, स्वच्छ प्लास्टिक की PET या BOPP से लेमीनेट किये हुए थैलों में करनी चाहिए।

इमली का घोल की पैकिंग कैसे करें 

इमली का घोल विशेषकर स्वच्छ टिन के डिब्बों, व काँच के मर्तबानों में अच्छी तरह सील करके पैक किया जाता है, इसका घोल पौलिस्टर की लेमीनेट किये गए पाउच में भी पैक किया जा सकता लौंग साबुत व पिसी लौंग अच्छी तरह से वायुरोधक डिब्बों में पैक की जाती है। इस तरह की पैकिंग सामग्री होनी चाहिये कि जो लौंग को किसी प्रकार का नुकसान न होने दे पाये। इसके लिए PET/LDPE के बैग भी इस्तेमाल किये जा सकते हैं।

मसालों की बिक्री व्यवस्था कैसे करे  (Marketing of Spices)


किसी भी उद्योग की कार्यक्षमता भरपूर मुनाफा व निरन्तर विकास की असीम संभावनायें उसकी बिक्री व्यवस्था पर निर्भर करती है। आप उत्पादन कितना भी करे सर्वप्रथम लक्ष्य होता है तैयार माल की समुचित विक्री व्यवस्था। आपको एक ऐसा पैनल बनाना होगा कि आप जो भी माल तैयार करे उसकी डिलीवरी तुरन्त स्टाकिस्ट डीलर व कन्ज्यूमर को होती रहे। यदि तैयार माल की डिलीवरी रुकी रहती है तो भंडारण की समस्या के साथ आर्थिक परेशानी भी सामने खड़ी हो जाती है। हम आपको बता चुके है कि आप जो भी उत्पाद तैयार करें, उन उत्पादों की लाभप्रद कीमत पर भरपूर तथा शीघ्र बिक्री ही आपके उद्योग, व्यवसाय का अंतिम लक्ष्य (FinalGoal) होता है क्योंकि विक्री ही एकमात्र वह साधन है जो आपके द्वारा खर्च किए धन को उचित मात्रा में लाभ की स्थिति में आपके पास वापस लाती है। आपको अपनी विक्री व्यवस्था बढ़ाने के लिए मार्केट की स्थिति, डिमान्ड व ग्राहकों की संतुष्टि का ध्यान रखना ही अपना चरम लक्ष्य रखना होगा। अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपने उत्पादन, पैकिंग व्यवस्था व प्रचार के साथ अपने डीलर्स, स्थाकिस्ट व कन्ज्यूमर के बीच में किसी भी माध्यम से सम्पर्क में रखना होगा। अपने उत्पाद को नित नये-नये ढंग से पेश करना भी उत्पाद को बेचने की एक कला है।
मसाला निर्माण और अचार मसाला निर्माण वैसे भी एक उपभोक्ता सामग्री उद्योग है जिसमें उत्पादन से अधिक महत्त्व बिक्री और प्रचार व्यवस्था का होता है, यहीकारण है कि हम मसालों के उत्पादन उनके परिचय आदि से पहले उनकी बिक्री व्यवस्था का यहाँ वर्णन कर रहे हैं ताकि आप अपने उत्पाद की अच्छी बिको कारक बाजार पर अपना अधिकार कायम कर सके।

मसाले उद्योग के लिए प्रचार व्यवस्था  कैसे करे (promotional arrangements for the spice industry)


जैसा कि हम पिकले अध्यायों में बता चुके हैं कि मसाला उद्योग एक कन्ज्यूमर (उपभोक्ता) की सामग्री हैं आपके द्वारा तैयार किए गये मसालों का विस्तृत क्षेत्र है, यह रोजमर्रा को एक वस्तु है, जिसके बिना भोजन तैयार नहीं हो सकता है। अत: यह आवश्यक नहीं अनिवार्य है कि आप अपने मसालों को विशेषताओं, उच्च गुणवत्ता और शुद्धता के बारे में उन्हें सूचित करते रहें। इसका सबसे सशक्त माध्यम तो टेलीविजन और महिला-उपयोगी विशेष पत्रिकायें ही है और बड़े पैमाने पर उत्पादन करते समय विज्ञापन के इन सशक्त माध्यमों का प्रयोग आपको करने हो चाहिए। छोटे पैमाने पर उद्योग प्रारंभ करते समय भी आप प्रचार पर कुछ न कुछ धन अवश्य कीजिए। याद रखिये प्रसार और विज्ञापन कोई फालतू का खर्च (Wastge of money) नहीं है यह तो मौलिक इन्वेस्टमेट (Solid Investment) है जो बढ़ती हुई विक्री के रूप में आपके उद्योग में एक नई जान डाल देता है। कुटीर अर्थात पैमाने पर उद्योग करते समय भी आप बहुत ही कम खर्च सघन और शीघ्र फलदायक प्रचार कर सकते हैं बस आवश्यकता हैं रुचि, कल्पनाशीलता और मार्गदर्शन की। नित्य घरेलू उपयोग की वस्तुएँ बेचने वाली दुकानों व जनरल मर्चेन्स पर आप अपने उत्पादन तो रखिए ही अपने उत्पादों के बोर्ड बड़े माप के स्टोकर्स भी लगवा दीजिए। समाचार-पत्रों में रुपे हुए पचे डलवाना अथवा विज्ञापन छपवना, सिनेमा हॉलों में स्लाइडें चलवाना आदि ऐसे कार्य हैं- जो स्थानीय और आपके मसालों का भरपूर प्रचार कर सकते हैं। नए उत्पादकों के लिए तो प्रचार ओर बिक्री के लिए सबसे सशक्त, उसी समय फल देने वाला और उसी स्थान पर उल्टा आर्थिक लाभ प्रदान कराने वाला सबसे निर्दोष साधन है। घर-घर जाकर वस्तुओं की बिक्री व प्रचार की व्यवस्था करना।

मसलों को रिटेल में बिक्री कैसे करें (Door to door Sale)

विज्ञापन करने के साथ-साथ विक्री व्यवस्था को उच्च सीमा तक घर-घर जाकर बिक्री करना भी अपने आप में विक्री प्रचार का एक सही जरिया है क्योंकि देश में बड़ी से बड़ी कम्पनी भी जब महिलाओं द्वारा विशेष रूप से प्रयोग की जाने वाली किसी नई वस्तु का निर्माण करती है तब उस वस्तु का भरपूर प्रचार करने के साथ-साथ कुछ युवक व युवतियों को घर जाकर माल बेचने के लिए भी नियुका  करती है। ये सेल्स ब्वाइज व गर्ल्स घरों में जाकर महिलाओं को अपने उत्पादन की विशेषता बताती हैं और उन्हें आपके उत्पादन के बारे में पूर्ण जानकारी देने वाला छपा हुआ पर्चा तथा डिस्काउण्ट कूपन आदि तो देती ही हैं, एक-दो पैकेट मसाले बेचने को चेष्टा भी करती है। आप भी इसी प्रकार की व्यवस्था कीजिए ताकि आपका माल सहज ही बिक जाएगा, बस आपने इतना ही करना है कि मसाले के प्रत्येक पैकट पर खरीदार को लगभग दस प्रतिशत तक डिस्काउण्ट भी दें। इस प्रकार विक्री करने से माल का प्रचार ओर बिक्री साथ-साथ हो जाती है और आपको खर्च भी कुछ नहीं करना पड़ता क्योंकि आप क्रेता को केवल 10 प्रतिशत तक ही डिस्काउण्ट दे रहें है जबकि दुकानदारों को 20 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक डिस्काउण्ट देना पड़ता है। डिस्काउण्ट का यह अंतर आपके प्रचारक का वेतन निकाल देता है। मध्यम स्तर पर मसाला निर्माण उद्योग लगाने वालों के लिए तो यह सबसे सरल तरीका है।


मसलों की बिक्री के लिए क्या  विक्रय प्रतिनिधि जरुरी हैं  (Sales Representative)


बिक्री व्यवस्था बढ़ाने की एक अहम भूमिका 'विक्रय प्रतिनिधि' भी है जो आपके उत्पाद को रिटेल तथा होलसेल के प्रत्येक बाज़ार में पहुँचाकर आसानी से रिटेल तथा कन्ज्यूमर तक पहुंचा देता है। विक्रय प्रतिनिधि एक ऐसा ज़रिया है जो आपके उत्पाद का गुणगान वहाँ बढ़ाकर आसानी से मार्केट तक पहुँचा देता है। आपके सप्लायर्स से आपके द्वारा तैयार किये गए मसाले खरीदकर उपभोक्ता प्रयोग कर लेता है और वह उनसे संतुष्ट भी होता है। वह उन्हें बार-बार खरीदना चाहता है अथवा आपका विज्ञापन देखकर कोई भी उपभोक्ता आपके द्वारा तैयार किए
गए मसाले खरीदने के लिए तत्पर भी हो जाता है लेकिन वह उन्हें खरीद तब ही पाता है जब आपके द्वारा निर्मित मसाले उसे अपनी आस-पास की दुकानों पर ही सहज उपलब्ध हों। यही कारण है कि उचित प्रचार और सशक्त बिक्री व्यवस्था (Proper Advestisement and Sale Organization) एक-दूसरे के पूरक हैं और एक के बिना दूसरा निष्प्रभावी और लगभग व्यर्थ ही है। विक्री ही एकमात्र वह साधन है जो अपके द्वारा लगाए गए धन को बढ़ाकर आपके पास वापस लाता है अत: इसमें पड़ने वाला कोई भी व्यवधान या ज़रा सी भी कमी हो जाने पर आपके उद्योग का सम्पूर्ण ढाँचा ही चरमरा देता है। मसाला निर्माण उद्योग में सतत विकास के लिए ही नहीं इस उद्योग को जीवित रखने के लिए भी यह परम आवश्यक है कि जितना ध्यान आप साबुत मसालों की खरीद, उनको पिसाई और पैकिंग पर देते हैं।
और अंत में........ 
हम तो आपको यही सलाह दे सकते है कि मसाला उद्योग एक ऐसी इण्डस्ट्री है जो व्यावसायिक रूप में उद्योग तो कम एक व्यवसाय (Trade) अधिक है। वैसे भी पिसे हुए मसालों और विविध उपयोगों के लिए तैयार किए हुए मिले-जुले हुए मसालों को बनाने का उद्योग है जिसमें न तो जटिल मशीनों का प्रयोग होता है और न ही किसी विशिष्ट अथवा दुर्लभ कच्चे माल का। इन्हे तैयार करना तो अत्यंत ही सरल है। किसी विशिष्ट तकनीकी कौशल (Technical Knowledge) की आवश्यकता पड़ती ही नहीं। जो भी समस्या आती है वह तैयार मसालों का लाभप्रद मूल्य पर बेचने में ही आती है। मसाला उद्योग में आपका लाभ प्रतिशत, प्रगति की गति और सफलता जिस चीज़ से सबसे प्रभावित होती है वह है आपकी बिक्री व्यवस्था। यही कारण है कि इस ब्लॉग के माध्यम से हमने सामान्य परम्परा से हटकर एक पूरा विक्री व्यवस्था और प्रचार व पैकिंग जैसे जीवन्त विषय पर दिया है यदि आप हमारे द्वारा दिये गए सुझावों व निर्देशों का पालन करते हैं तो इस उद्योग में हमेशा आपकी जीत होती रहेगी और आप फिर पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे। आशा है आप इस आर्टिकल के माध्यम हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से संतुस्ट होंगे। 

दोस्तों हम अगले आर्टिकल में जानेंगे मसाला उद्योग के कुछ और प्रकार के बारे में....... 
आपको यह आर्टिकल कैसा लगा कमेंट सेक्शन में जरूर लिखें हमें ख़ुशी होगी। ..... धन्यवाद 


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2 टिप्पणियाँ

  1. बहुत खूब इतने मार्गदर्शक के ले धन्यवाद् आपसे एक ओर साहता चाहते है कि आप कुछ मसाले जैसे गरम मसाला मीट मसाला ओर चाट मसाला का फार्मूला दे ताकि नये उधमी जिसको इन मसालो को बनाने में कठनाई हो रही है और कहीं से मदद नहीं मिल रही तो मार्गदर्शन हो सके धन्यवाद

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  2. मैं आपकी वेबसाइट को बहुत ही ज्यादा पसंद करता हूं, ऐसी वेबसाइट किसी की नहीं मिली अभी तक। और आपके ऑर्टिकल पढ़ने के बाद मैंने भीं ब्लॉग लिखाना शुरू किया हैं, क्या आप मेरी वेबसाइट देख कर बता सकते हैं। क्या मैं सही काम कर रहा हूं प्लीज़ मेरी मदद करें।

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